Sunday 14 June 2015

तरतीब


जिये गए समय
और गुज़ार लिए समय की
तरतीब जब बाँधी गई

दक्षता और योग्यता को
मांझने के समय को बिताया
असमंजस में ...

रोज़ी -रोटी की दौड़ में
कतारों में लगे  -लगे बीता समय
अक्सर उम्मीदों का था
नक्शे ज़्यादा होते थे और होते थे अस्पष्ट भी
पहुँचने की जगह का
नहीं रहता था
मन से कोई ताल्लुक

अधर से कटा समय का  टुकड़ा
खड़ा था विस्थापित जड़ें लिए

जहाँ हारे
अक्सर वहीं कीं सफलताएं अर्जित
जो अप्राप्य लगा
उसी के पीछे ज़्यादा भागे

जीत की एक ही शर्त थी
दायित्व हार जाते अगर .......!


संध्या


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