Thursday 8 October 2015

जैसे बूँदें
धुप से निकले
छूने ज़मीन को 
ठीक वेसे ही निकलना
जीवन की तंग गलियों से
छूना अंतस की 
ज़मीन को निर्द्वंद्व....

पत्तों को निथार कर 
टपकती फुहारें ठहरती 
रूकती अपनी बूंदों के बीच
संभालतीं अपना पृष्ठ तनाव
आतुर पहुँचने को अपने 
गंतव्य की और जैसे ....
कुछ देर ठहरना, करना प्रतीक्षा
 कोर पर ठहरी बूँद
ज्यों ठहर करती प्रतीक्षा 
आती हुई दूसरी बूँद का ....
जाते हुए अपने 
गंतव्य को .....

पाने अपना ध्येय चरम ...!

संध्या 

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