अम्मा
जब भी करती थी बिदा
जाने कितनी गठरियाँ
बाँध धर देती थी संदूक में
सारे काम निपटाकर
थोडा कुछ खा पीकर
भंडारे में खोलती थी संदूक
माँ की सोंधी सी महक
हर गठरी से लहक उठती थी
रंग बिरंगे चपेटे की गठरी
रंगीन तितली से हाथों में चिपक जाते थे ....
साड़ियों के बीच छुपे सिक्के
कैसे पता होता था माँ को
उसकी चोर ज़रूरतों का
एक ज़िंदगी जिसमे थीसांसे
स्पंदन सपनो की विरासतें
रेत के टीले सुनहरी सफ़ेद फ्रॉक गुलाबी रिबन सुनहरी
कामदार मोजड़ी पथ्थर की
असंख्य मालाएं ...
दुलार राखी का स्पर्श पापा
की किताब की खुशबू ...
साल दर साल
अपनी जगह बदलता
अपना रूप भी बदलता
पर जब भी खोलती संदूक
यादों के पिटारे साथ चले आते गठरियों की महक लिए
जिसे सिर्फ वो जानती
और ये संदूक ....
संध्या
जब भी करती थी बिदा
जाने कितनी गठरियाँ
बाँध धर देती थी संदूक में
सारे काम निपटाकर
थोडा कुछ खा पीकर
भंडारे में खोलती थी संदूक
माँ की सोंधी सी महक
हर गठरी से लहक उठती थी
रंग बिरंगे चपेटे की गठरी
रंगीन तितली से हाथों में चिपक जाते थे ....
साड़ियों के बीच छुपे सिक्के
कैसे पता होता था माँ को
उसकी चोर ज़रूरतों का
एक ज़िंदगी जिसमे थीसांसे
स्पंदन सपनो की विरासतें
रेत के टीले सुनहरी सफ़ेद फ्रॉक गुलाबी रिबन सुनहरी
कामदार मोजड़ी पथ्थर की
असंख्य मालाएं ...
दुलार राखी का स्पर्श पापा
की किताब की खुशबू ...
साल दर साल
अपनी जगह बदलता
अपना रूप भी बदलता
पर जब भी खोलती संदूक
यादों के पिटारे साथ चले आते गठरियों की महक लिए
जिसे सिर्फ वो जानती
और ये संदूक ....
संध्या
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